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महाराज बलवंत सिंह स्नातकोत्तर महाविद्यालय, गंगापुर, वाराणसी की स्थापना 15 नवम्बर 1972 अक्षय नवमी के दिन कीर्तिशेष स्व० महाराज डॉ० विभूति नारायण सिंह जी द्वारा अपने पूर्वजों की कर्मस्थली गढ़ गंगापुर में की गयी । यह महाविद्यालय महाराज काशिराज धर्मकार्य निधि, दुर्ग रामनगर, वाराणसी द्वारा संरक्षित एवं संचालित है। स्व० महाराज की शिक्षा के प्रचार-प्रसार के प्रति गहरी रूचि रही और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रचार-प्रसार तथा नारी शिक्षा के प्रति विशेष अभिरूचि के कारण ग्रामीण अंचल में इस महाविद्यालय की स्थापना की गयी । प्रारम्भ में गढ़ गंगापुर में काशिराज के सावन-भादों महल में बी०ए० की कक्षाएं तथा राजातालाब में काशिराज की कोठी में विधि की कक्षाएं प्रारम्भ की गयीं । स्व० महाराज के आशीर्वाद एवं सतत् प्रयास से निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहा है और आज महाविद्यालय अपने दो परिसरों क्रमशः गंगापुर एवं राजातालाब में नवीन भवनों में संचालित जनपद के अग्रणी महाविद्यालयों में एक है ।
महाविद्यालय में छात्र/छात्राओं की बी०ए० की कक्षाओं के साथ-साथ एलएल०बी०, एलएल०एम०, बी०सी०ए० तथा परास्नातक स्तर पर इतिहास, मनोविज्ञान, गृहविज्ञान, समाजशास्त्र, हिन्दी, संस्कृत एवं शिक्षाशास्त्र की कक्षाएं चलती हैं। उ०प्र० के ग्रामीण क्षेत्र में एलएल०एम० की सर्वप्रथम मान्यता प्राप्त करने वाले महाविद्यालय का गौरव हमें प्राप्त है । महाविद्यालय के सभी विभाग अनुभवी एवं श्रेष्ठ प्राध्यापकों से युक्त हैं । विभिन्न विभागों की प्रयोगशाला, प्रायोगिक उपकरणों, कम्प्यूटर एवं प्रोजेक्टर आदि से सुसज्जित है तथा सभी विभाग अवस्थापना सम्बन्धी मूलभूत सुविधाआंे से युक्त हैं। महाविद्यालय के प्राध्यापकांे, कर्मचारियों तथा छात्र/छात्राओं में नैतिकता का उन्नयन हो, आचरण की शुद्धता रहे तथा उनमें भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष अभिरुचि बनी रहे, इसके लिए महाविद्यालय में समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता हैं ।
महाविद्यालय को विकास के वर्तमान स्तर पर पहुँचाने में स्व० महाराज की प्रेरणा, मार्गदर्शन तथा विराट व्यक्तित्व हमेशा सहायक एवं प्रेरणादायक रहा है । स्व० महाराज जहाँ एक ओर प्राचीन भारतीय संस्कृति के प्रबल संवाहक थे वहीं आधुनिक शिक्षा एवं नारी शिक्षा के विकास के प्रति उनकी गहरी अभिरूचि का ही परिणाम है कि महाविद्यालय में विधि, बी०सी०ए० जैसे व्यावसायिक एवं तकनीकी पाठ्यक्रम संचालित हैं। नारी शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु स्व० महाराज द्वारा इस महाविद्यालय के घटक के रूप में रामनगर तथा पिण्डरा में महिला महाविद्यालयों की स्थापना की गयी जो आज स्वतंत्र महाविद्यालय के रूप में संचालित होकर नारी शिक्षा के उन्नयन में संलग्न हैं।
पूज्य महाराज महाविद्यालय परिवार को अपने परिवार का अंगीकृत घटक मानते थे । व्यक्ति एवं संस्था को सतत् विकास के पथ पर अग्रसर करने की प्रेरणा देने का उनका विशिष्ट ढंग था । व्यक्ति के दोषों को व्यक्तिगत रूप से बताना एवं गुणों को सार्वजनिक रूप से प्रकट करना उनके स्वभाव का वैशिष्ट्य था । अपने अधीनस्थों को संरक्षित करने की प्रवृत्ति उनके व्यवहार से सर्वदा प्रकट होती थी । महाविद्यालय की किसी भी समस्या को वे अपनी व्यक्तिगत समस्या मानकर उसके निराकरण हेतु तन मन धन से तत्पर रहते थे।
महाविद्यालय के प्राध्यापकों, कर्मचारियों तथा छात्र/छात्राओं की नैतिक उन्नति, आचरण की शुद्धता तथा भारतीय संस्कृति के प्रति अभिरूचि बनी रहे, इसके लिए महाविद्यालय में समय-समय पर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन पर उनका हमेशा ध्यान रहता था । धार्मिक निष्ठा, भारतीय संस्कृति के प्रति अगाध लगन तथा राजोचित मर्यादाओं के साक्षात् स्वरूप होने के कारण उन्हें काशी की जनता साक्षात् शिव का रूप मानती रही और वे जिधर से भी गुजरते थे, हर-हर महादेव का उद्घोष आम जन में स्वतः स्फूर्त होकर गूंज उठता था । महाविद्यालय प्रबन्ध समिति के अध्यक्ष एवं वर्तमान काशिराज डॉ० अनन्त नारायण सिंह, स्व० संस्थापक महाराज द्वारा स्थापित मानकों एवं मर्यादाओं के अनुरूप, उनके द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थाओं के विकास में निरन्तर प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। उनके निर्देशन में शिक्षा के सर्वांगीण विकास की आधुनिक सुविधाएं तथा अवस्थापना सुविधाएं महाविद्यालय को प्राप्त हो रही हैं। उनके मार्ग दर्शन एवं आशीर्वाद से महाविद्यालय निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहकर शिक्षा के क्षेत्र में काशिराज के गौरव को आगे बढ़ाने में सन्नद्ध है । हमारी प्राथमिकताएँ, परिकल्पनाएँ एवं हमारे स्वप्न उच्च शिक्षा की व्यापक परिधि एवं परिवेश में सन्निहित गुणों को समायोजित करते हुए उन्हें स्थायी रूप से बनाए रखना, राष्ट्रीय, वैश्विक आवश्यकताओं एवं हितों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा का समुचित प्रचार-प्रसार करना, मानव अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करना तथा अपने राष्ट्रीय मूल्यों, संस्कृति एवं विरासत को संजोए रखने में योगदान करना।